[ऋषि - कण्व धौर । देवता- पूषा । छन्द - गायत्री]
४९९.सं पूषन्नध्वनस्तिर व्यंहो विमुचो नपात् ।
सक्ष्वा देव प्र णस्पुरः ॥१॥
हे पूषादेव ! हम पर सुखो को न्योछावर करें। पाप मार्गो से हमे पार लगाएं। हे देव ! हमे आगे बढा़ए॥१॥
५००.यो नः पूषन्नघो वृको दुःशेव आदिदेशति ।
अप स्म तं पथो जहि ॥२॥
हे पूषादेव ! जो हिंसक, चोर जुआ खेलने वाले हम पर शासन करना चाहते है, उन्हे हम से दूर करें॥२॥
५०१.अप त्यं परिपन्थिनं मुषीवाणं हुरश्चितम् ।
दूरमधि स्रुतेरज ॥३॥
हे पूषादेव ! मार्ग मे घात लगानेवाले तथा लूटनेवाले कुटिल चोर को हमारे मार्ग से दूर करके विनष्ट करें॥३॥
५०२.त्वं तस्य द्वयाविनोऽघशंसस्य कस्य चित् ।
पदाभि तिष्ठ तपुषिम् ॥४॥
आप हर किसी दुहरी चाल चलने वाले कुटिल हिंसको के शरीर को पैरो से कुचलकर खड़े हों, अर्थात इन्हे दबाकर रखें, उन्हे बढने न दे॥४॥
५०३.आ तत्ते दस्र मन्तुमः पूषन्नवो वृणीमहे ।
येन पितॄनचोदयः ॥५॥
हे दुष्ट नाशक, मनीषी पूषादेव ! हम अपनी रक्षा के निमित्त आपकी स्तुति करते हैं। आपके संरक्षण ने ही हमारे पितरों को प्रवृद्ध किया था॥५॥
५०४.अधा नो विश्वसौभग हिरण्यवाशीमत्तम ।
धनानि सुषणा कृधि ॥६॥
हे सम्पूर्ण सौभाग्ययुक्त और स्वर्ण आभूषणो से युक्त पूषादेव! हमारे लिए सभी उत्तम धन एवं सामर्थ्यो को प्रदान करें॥६॥
५०५.अति नः सश्चतो नय सुगा नः सुपथा कृणु ।
पूषन्निह क्रतुं विदः ॥७॥
हे पूषादेव ! कुटिल दुष्टो से हमे दूर ले चलें। हमे सुगम-सुपथ का अवलम्बन प्रदान करें एवं अपने कर्तव्यो का बोध कराएं॥७॥
५०६.अभि सूयवसं नय न नवज्वारो अध्वने ।
पूषन्निह क्रतुं विदः ॥८॥
हे पूषादेव ! हमए उत्तम जौ (अन्न) वाले देश की ओर के चले। मार्ग मे नवीन संकट न आने पायें। हमे अपने कर्तव्यो का ज्ञान करायें।(हम इन कर्तव्यो को जाने।)॥८॥
५०७.शग्धि पूर्धि प्र यंसि च शिशीहि प्रास्युदरम् ।
पूषन्निह क्रतुं विदः ॥९॥
हे पूषादेव! हमरे सामर्थ्य दें। हमे धनो से युक्त करें। हमे साधनो से सम्पन्न करें। हमे तेजस्वी बनाएं। हमारी उदरपूर्ति करें। हम अपने इन कर्तव्यो को जाने॥९॥
५०८.न पूषणं मेथामसि सूक्तैरभि गृणीमसि ।
वसूनि दस्ममीमहे ॥१०॥
हम पूषादेव को नहीं भूलते ! सुक्तो मे उनकी स्तुति करते है। प्रकाशमान सम्पदा हम उनसे मागंते है॥१०॥