ऋग्वेद-संहिता - प्रथम मंडल सूक्त २६

[ऋषि- शुन:शेप आजीगर्ति। देवता अग्नि।छन्द गायत्री।]

वसिष्वा हि मियेध्य वस्त्राण्यूर्जां पते। सेमं नो अध्वरं यज॥१॥
हे यज्ञ योग्य अन्नो के पालक अग्निदेव! आप अपने तेजरूप वस्त्रो को पहनकर हमारे यज्ञ को सम्पादित करें॥१॥
नि नो होता वरेण्यः सदा यविष्ठ मन्मभिः। अग्ने दिवित्मता वचः॥२॥
सदा तरुण रहने वाले हे अग्निदेव! आप सर्वोत्तम होता(यज्ञ सम्पन्न कर्ता) के रूप मे यज्ञकुण्ड मे स्थापित होकर स्तुति वचनो का श्रवण करें॥२॥
आ हि ष्मा सूनवे पितापिर्यजत्यापये। सखा सख्ये वरेण्यः॥३॥
हे वरण करने योग्य अग्निदेव! जैसे पिता अपने पुत्र के,भाई अपने भाई के और मित्र अपने मित्र के सहायक होते है, वैसे ही आप हमारी सहायता करें॥३॥
आ नो बर्ही रिशादसो वरुणो मित्रो अर्यमा। सीदन्तु मनुषो यथा॥४॥
जिस प्रकार प्रजापति के यज्ञ मे "मनु " आकर शोभा बढा़ते हैं, उसी प्रकार शत्रुनाशक वरुणदेव, मित्र-देव एवं अर्यमादेव हमारे यज्ञ मे आकर विराजमान हो॥४॥
पूर्व्य होतरस्य नो मन्दस्व सख्यस्य च। इमा उ षु श्रुधी गिरः॥५॥
पुरातन होता हे अग्निदेव! आप हमारे इस यज्ञ से और हमारे मित्रभाव से प्रसन्न हों और हमारी स्तुतियों को भली प्रकार से सुने॥५॥
यच्चिद्धि शश्वता तना देवंदेवं यजामहे। त्वे इद्धूयते हविः॥६॥
हे अग्निदेव! इन्द्र, वरुण आदि अन्य देवताओ के लिये प्रतिदिन विस्तृत आहुतियाँ अर्पित करने पर भी सभी हविष्यमान आपको ही प्राप्त होते है॥६॥
प्रियो नो अस्तु विश्पतिर्होता मन्द्रो वरेण्यः। प्रियाः स्वग्नयो वयम्॥७॥
यज्ञ समपन्न करने वाले प्रजापालक, आनदवर्धक,वरण करने योग्य हे अग्निदेव आप हमे प्रिय हो तथा श्रेष्ठ विधि से यज्ञाग्नि की रक्षा करते हुये हम सदैव आपके प्रिय रहें॥७॥
स्वग्नयो हि वार्यं देवासो दधिरे च नः। स्वग्नयो मनामहे॥८॥
उत्तम अग्नि से युक्त हो कर दैदीप्यमान ऋत्विजो के हमारे लिये ऐश्वर्य को धारण किया है, वैसे जी हम उत्तम अग्नि से युक्त होकर इनका (ऋत्विज) का स्वागत करते है॥८॥
अथा न उभयेषाममृत मर्त्यानाम्। मिथः सन्तु प्रशस्तयः॥९॥
अमरत्व को धारण करने वाले हे अग्निदेव! आपके और हम मरणशील मनुष्यो के बीच स्नेहयुक्त और प्रशंसनीय वाणियो का आदान प्रदान होता रहे॥९॥
विश्वेभिरग्ने अग्निभिरिमं यज्ञमिदं वचः। चनो धाः सहसो यहो॥१०॥
बल के पुत्र(अरणि मन्थन के रूप शक्ति से उत्पन्न) भे अग्निदेव! आप(आहवनीयादि) अग्नियो के साथ यज्ञ मे पधारें और स्तुतियों को सुनते हुये अन्न(पोषण) प्रदान करें॥१०॥

2 टिप्पणियाँ:

Raji Chandrasekhar ने कहा…

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Pt. Santosh Bhardwaj ने कहा…

I am trying to find out Rig Ved chapter 2 onwards over the internet, with Sanskrat & Hindi, but without success. Can you help me. I appreciate your attempt.

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