ऋग्वेद-संहिता - प्रथम मंडल सूक्त ४८


[ऋषि - प्रस्कण्व काण्व । देवता - उषा। छन्द -  बाहर्त प्रगाथ (विषमा बृहती, समासतो बृहती)।]

५६७.सह वामेन न उषो व्युच्छा दुहितर्दिवः ।
सह द्युम्नेन बृहता विभावरि राया देवि दास्वती ॥१॥
हे आकाशपुत्री उषे! उत्तम तेजस्वी,दान देने वाली, धनो और महान ऐश्वर्यों से युक्त होकर आप हमारे सम्मुख प्रकट हों, अर्थात हमे आपका अनुदान- अनुग्रह होता रहे॥१॥

५६८.अश्वावतीर्गोमतीर्विश्वसुविदो भूरि च्यवन्त वस्तवे ।
उदीरय प्रति मा सूनृता उषश्चोद राधो मघोनाम् ॥२॥
अश्व, गौ आदि (पशुओं अथवा संचारित होने वाली एवं पोषक किरणों) से सम्पन्न धन्य धान्यों को प्रदान करने वाली उषाएँ प्राणिमात्र के कल्याण के लिए प्रकाशित हुई हैं। हे उषे! कल्याणकारी वचनो के साथ आप हमारे लिए उपयुक्त धन वैभव प्रदान करें॥२॥

५६९.उवासोषा उच्छाच्च नु देवी जीरा रथानाम् ।
ये अस्या आचरणेषु दध्रिरे समुद्रे न श्रवस्यवः ॥३॥
जो देवी उषा पहले भी निवास कर चुकी हैं, वह रथो को चलाती हुई अब भी प्रकट हो। जैसे रत्नो की कामना वाले मनुष्य समुद्र की ओर मन लगाये रहते हैं; वैसे ही हम देवी उषा के आगमन की प्रतिक्षा करते हैं॥३॥

५७०.उषो ये ते प्र यामेषु युञ्जते मनो दानाय सूरयः ।
अत्राह तत्कण्व एषां कण्वतमो नाम गृणाति नृणाम् ॥४॥
हे उषे! आपके आने के समय जो स्तोता अपना मन, धनादि दान करने मे लगाते है, उसी समय अत्यन्त मेधावी कण्व उन मनुष्यों के प्रशंसात्मक स्तोत्र गाते हैं॥४॥

५७१.आ घा योषेव सूनर्युषा याति प्रभुञ्जती ।
जरयन्ती वृजनं पद्वदीयत उत्पातयति पक्षिणः ॥५॥
उत्तम गृहिणी स्त्री के समान सभी का भलीप्रकार पालन करने वाली देवी उषा जब आयी है, तो निर्बलो को शक्तिशाली बना देती हैं, पाँव वाले जीवो को कर्म करने के लिए प्रेरित करती है और पक्षियों को सक्रिय होने की प्रेरणा देती है॥५॥


५७२.वि या सृजति समनं व्यर्थिनः पदं न वेत्योदती ।
वयो नकिष्टे पप्तिवांस आसते व्युष्टौ वाजिनीवति ॥६॥
देवी उषा सबके मन को कर्म करने के लिए प्रेरित करती हैं तथा धन इच्छुको को पुरुषार्थ के लिए भी प्रेरणा देती है। ये जीवन दात्री देवी उषा निरन्तर गतिशील रहती हैं। हे अन्नदात्री उषे! आपके प्रकाशित होने पर पक्षी अपने घोसलों मे बैठे नही रहते॥६॥

५७३.एषायुक्त परावतः सूर्यस्योदयनादधि ।
शतं रथेभिः सुभगोषा इयं वि यात्यभि मानुषान् ॥७॥
हे देवी उषा सूर्य के उदयस्थान से दूरस्थ देशो को भी जोड़ देती हैं। ये सौभाग्यशालिनी देवी उषा मनुष्य लोक की ओर सैंकड़ो रथो द्वारा गमन करती हैं॥७॥

५७४.विश्वमस्या नानाम चक्षसे जगज्ज्योतिष्कृणोति सूनरी ।
अप द्वेषो मघोनी दुहिता दिव उषा उच्छदप स्रिधः ॥८॥
सम्पूर्ण जगत इन देवी उषा के दर्शन करके झुककर उन्हे नमन करता है। प्रकाशिका, उत्तम मार्गदर्शिका, ऐश्वर्य सम्पन्न आकाश पुत्री देवी उषा, पीड़ा पहुँचाने वाले हमारे बैरियों को दूर हटाती हैं॥८॥

५७५.उष आ भाहि भानुना चन्द्रेण दुहितर्दिवः ।
आवहन्ती भूर्यस्मभ्यं सौभगं व्युच्छन्ती दिविष्टिषु ॥९॥
हे आकाशपुत्री उषे! आप आह्लादप्रद दीप्ती से सर्वत्र प्रकाशित हों। हमारे इच्छित स्वर्ग-सुख युक्त उत्त्म सौभाग्य को ले आयें और दुर्भाग्य रूपी तमिस्त्रा को दूर करें॥९॥

५७६.विश्वस्य हि प्राणनं जीवनं त्वे वि यदुच्छसि सूनरि ।
सा नो रथेन बृहता विभावरि श्रुधि चित्रामघे हवम् ॥१०॥
हे सुमार्ग प्रेरक उषे! उदित होने पर आप ही विश्व के प्राणियो का जीवन आधार बनती हैं। विलक्षण धन वाली, कान्तिमती हे उषे! आप अपने बृहत रथ से आकर हमारा आवाह्न सुनें॥१०॥

५७७.उषो वाजं हि वंस्व यश्चित्रो मानुषे जने ।
तेना वह सुकृतो अध्वराँ उप ये त्वा गृणन्ति वह्नयः ॥११॥
हे उषादेवि! मनुष्यो के लिये विविध अन्न-साधनो की वृद्धि करें। जो याजक आपकी स्तुतियाँ करते है, उनके इन उत्तम कर्मो से संतुष्ट होकर उन्हें यज्ञीय कर्मो की ओर प्रेरित करें॥११॥

५७८.विश्वान्देवाँ आ वह सोमपीतयेऽन्तरिक्षादुषस्त्वम् ।
सास्मासु धा गोमदश्वावदुक्थ्यमुषो वाजं सुवीर्यम् ॥१२॥
हे उषे! सोमपान के लिए अंतरिक्ष से सब देवों को यहाँ ले आयें। आप हमे अश्वों, गौओ से युक्त धन और पुष्टिप्रद अन्न प्रदान करें॥१२॥

५७९.यस्या रुशन्तो अर्चयः प्रति भद्रा अदृक्षत ।
सा नो रयिं विश्ववारं सुपेशसमुषा ददातु सुग्म्यम् ॥१३॥
जिन देवी उषा की दीप्तीमान किरणे मंगलकारी प्रतिलक्षित होती हैं, वे देवी उषा हम सबके लिए वरणीय, श्रेष्ठ, सुखप्रद धनो को प्राप्त करायें॥१३॥

५८०.ये चिद्धि त्वामृषयः पूर्व ऊतये जुहूरेऽवसे महि ।
सा न स्तोमाँ अभि गृणीहि राधसोषः शुक्रेण शोचिषा ॥१४॥
हे श्रेष्ठ उषादेवि! प्राचीन ऋषि आपको अन्न और संरक्षण प्राप्ति के लिये बुलाते थे। आप यश और तेजस्विता से युक्त होकर हमारे स्तोत्रो को स्वीकार करें॥१४॥

५८१.उषो यदद्य भानुना वि द्वारावृणवो दिवः ।
प्र नो यच्छतादवृकं पृथु च्छर्दिः प्र देवि गोमतीरिषः ॥१५॥
हे देवी उषे! आपने अपने प्रकाश से आकाश के दोनो द्वारों को खोल दिया है। अब आप हमे हिंसको से रक्षित, विशाल आवास और दुग्धादि युक्त अन्नो को प्रदान करें॥१५॥

५८२.सं नो राया बृहता विश्वपेशसा मिमिक्ष्वा समिळाभिरा ।
सं द्युम्नेन विश्वतुरोषो महि सं वाजैर्वाजिनीवति ॥१६॥
हे देवी उषे! आप हमें सम्पूर्ण पुष्टिप्रद महान धनो से युक्त करें, गौओं से युक्त करें। अन्न प्रदान करने वाली, श्रेष्ठ हे देवी उषे! आप हमे शत्रुओं का संहार करने वाला बल देकर अन्नो से संयुक्त करें॥१६॥

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